दनादन एनकाउंटर से छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों की टूटी कमर, पहली बार 'लगान' वसूली भी बंद

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जो गांव पहले नक्सलियों के पक्ष का माना जाता था, अब वही पहला ऐसा गांव बना है जहां के ग्रामीणों ने साहस दिखाते हुए पहली बार नक्सली संगठन को अपने उत्पादन का वार्षिक हिस्सा नहीं दिया है।
नक्सलियों के गढ़ सुकमा में सुरक्षाबलों द्वारा लगातार लगाए जा रहे कैंप और ऑपरेशन का परिणाम स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है। जिले का एक गांव जिसे नक्सलियों के पक्ष का माना जाता था, अब वही पहला ऐसा गांव बना हैं जहां के ग्रामीणों ने पहली बार नक्सल संगठन को वनोपज का वार्षिक हिस्सा नहीं दिया है।

दरअसल, सुरक्षाबलों द्वारा इलाके में लगाए गए कैंप और लगातार जारी ऑपरेशन से ग्रामीणों का हौसला भी बुलंद हुआ है।  मामला पोलमपल्ली थाना क्षेत्र के अरलमपल्ली गांव का है। गांव के एक व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि प्रति वर्ष गांव के लोगों से नक्सलियों के स्थानीय संगठन द्वारा महुआ के सीजन में प्रति घरों से एक पैली महुआ लिया जाता था। इसी तरह धान की फसल कटने के बाद प्रति परिवारों द्वारा नक्सलियों को एक खंडी जिसे 20 पैली कहा जाता है, धान भी देना होता था।

तेंदूपत्ते के सीजन में ग्रामीण 20 से 50 गड्डी तेंदूपत्ते का पैसा दिया करते थे। यह पहला वर्ष है जिसमें महुआ का सीजन समाप्त हो चुका है और नक्सलियों को उनका हिस्सा नहीं दिया गया है। अरलमपल्ली वही गांव है जहां बीते विधानसभा चुनाव से पूर्व नक्सलियों ने गांव में बने स्कूल व पुराने पंचायत भवन में चुनाव का बहिष्कार करने के नारे लिखे थे।  

सलवा जूडूम में शामिल होने से ग्रामीणों ने किया था इनकार

वर्ष 2006 में सलवा जूडूम अभियान की शुरुआत हुई थी। नक्सलियों के खिलाफ शुरू हुए इस अभियान में अरलमपल्ली गांव के दो परिवारों को छोड़ दें तो गांव का कोई भी ग्रामीण इस अभियान का हिस्सा नहीं बना। इसके बाद ग्रामीणों ने सलवा जूडूम के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सुरक्षाबलों के साथ मिलकर गांव के 129 घरों में आगजनी कर दी थी। इस घटना के बाद अरलमपल्ली गांव के ग्रामीणों का झुकाव नक्सल संगठन की ओर हो गया था। 

सुरक्षा कैंपों से घेरा जा चुका है पूरा इलाका

अरलमपल्ली गांव का पूरा इलाका सुरक्षाबलों के कैंपों से घेरा जा चुका है। दोरनापाल से जगरगुंडा मार्ग पर चिंतागुफा तक पहले से ही कई सारे कैंप मौजूद हैं। वहीं दोरनापाल से इंजरम व इंजरम से भेज्जी के बीच भी यह इलाका सीआरपीएफ, कोबरा व डीआरजी के कैंप से घिरा हुआ है। जबकि भेज्जी से चिंतागुफा के बीच कुछ समय पहले ही सुरक्षाबलों का कैंप स्थापित किया गया है। ऐसा माना जाता रहा है कि भेज्जी से चिंतागुफा के बीच बड़े से इलाके से नक्सली अरलमपल्ली, पालामड़गु व जग्गावारम में आया जाया करते थे। यहां कैंप लगने के बाद से हथियारबंद नक्सली अब नहीं आ पा रहे हैं। 

अब बुनियादी सुविधाओं के साथ विकास चाहते हैं लोग

कुछ ग्रामीणों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि अब लोग गांव में स्कूल, अस्पताल, मछली पालन के लिए तालाब का निर्माण, भूमि समतलीकरण, सोलर पंप, वन भूमि का पट्टा, सामुदायिक भवन व बेहतर आवागमन के लिए पक्की सड़क चाहते हैं। ग्रामीणों ने कहा कि इस बार हिस्सा नहीं दिया गया है जो ग्रामीणों के लिए अच्छा है। गांव का विकास होगा तो ग्रामीणों के लिए और बेहतर होगा।