हाल के दिनों में ऐसे कई मौके देखने को मिले हैं, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दूवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर को लेकर ऐसे बयान दिए हैं, जिससे संघ और बीजेपी के लोगों में उनके खिलाफ गुस्सा और नाराजगी दिखी है। हालांकि, यह बात भी सत्य है कि गांधी परिवार से संघ और सावरकर का पुराना रिश्ता रहा है। यह रिश्ता मधुर और चुनावों में जीत दिलाने वाला रहा है। राहुल गांधी की दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राहुल के पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चुनावी जीत में संघ ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
शायद यही वजह है कि 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिसंबर के अंत में जब लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 404 सीटों पर प्रचंड जीत दर्ज की तो कांग्रेस नेता रहे जगजीवन राम ने 1984 के आम चुनाव के नतीजों को "हिंदू भारत के लिए दिया गया वोट" करार दिया। 1984 के चुनाव में संघ परिवार ने खुले तौर पर राजीव गांधी का समर्थन किया था, जिससे उस चुनाव में भाजपा हाशिए पर चली गई थी और सिर्फ दो सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी। हालांकि, वह भाजपा का पहला संसदीय चुनाव था।
इंदिरा की हत्या से देशभर में था उबाल
दरअसल, तब इंदिरा गांधी की सिख अंगरक्षकों द्वारा की गई हत्या की वजह से
देश के अंदर सिखों के खिलाफ एक उबाल था, लेकिन हिन्दू मतदाताओं को चुनावों
में कांग्रेस के प्रति लामबंद करने की प्रवृत्ति इंदिरा गांधी की "हिंदू
कार्ड" नीति में पहले से ही छिपी हुई थी। 1977 के चुनावों में हार के बाद
इंदिरा हाशिए पर चली गई थीं लेकिन जब 1980 में लोकसभा के चुनाव हुए तब उनकी
हिन्दू कार्ड की वजह से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनका भरपूर समर्थन
किया था और इंदिरा की अगुवाई वाली कांग्रेस 353 सीटें जीत कर सत्ता पर फिर
से काबिज हो सकीं।
संघ नेताओं से इंदिरा ने बढ़ाई थी नजदीकियां
कारवां मैग्जीन में लिखे एक आलेख में वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली ने लिखा
है कि गांधी परिवार और संघ के बीच गठबंधन तब और मजबूत हुआ, जब इंदिरा ने
संघ के सर्वोच्च नेता मधुकर दत्तात्रेय देवरस, जिन्हें बालासाहेब देवरस के
नाम से भी जाना जाता है, के साथ संवाद स्थापित किया। दोनों नेताओं के बीच
नई साझेदारी के परिणामस्वरूप इंदिरा और राजीव दोनों ने अपने-अपने दौर में
हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति को अपनाया।
अली लिखते हैं कि 1980 के दशक के दौरान संघ परिवार ने हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए अक्सर कांग्रेस सरकारों की मिलीभगत से अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन को तेज किया और उसे जनाधार बढ़ाने वाले एक राजनीतिक उपक्रम के रूप में इस्तेमाल किया। हालांकि, सरकार की मौन सहमति, राष्ट्रीय स्वयंसेवर संघ और मंदिर आंदोलन की तिगड़ी ने भाजपा को हिंदू मतदाताओं के साथ गहरे स्तर पर जुड़ने में मदद की, जिससे कांग्रेस संसदीय चुनावों में बहुमत से धीरे-धीरे दूर होती चली गई।
इंदिरा ने कहा था- हिन्दू धर्म पर हो रहे हमले
कांग्रेस के हिन्दूवादी नजरिए में 1980 के दशक में अचानक परिवर्तन नहीं आया
था। इंदिरा को विरासत में जवाहरलाल नेहरू की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा मिली
थी लेकिन उन्होंने अपने फैसलों से बहुसंख्यक समुदाय के भीतर असुरक्षा को ना
सिर्फ बढ़ावा दिया, बल्कि समाज को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत भी किया।
1983 में राज्य विधानसभा चुनावों, खासकर जम्मू और कश्मीर के चुनावों में
इंदिरा ने इस प्रवृत्ति पर बहुत जोर दिया। इतना ही नहीं, 1984 में ऑपरेशन
ब्लू स्टार के मद्देनजर, इंदिरा ने खुले तौर पर कहा था कि "हिंदू धर्म पर
हमला हो रहा है।" उनके इस हिन्दू कार्ड से बहुसंख्यकवादी राजनीति का
विस्तार तो हुआ लेकिन उससे सांप्रदायिक हिंसा की लपटें भी उठने लगीं,
जिसमें उनकी दुखदायी और दर्दनाक हत्या भी कर दी गई।
सावरकर का इंदिरा ने किया था गुणगान
इंदिरा 1980 के दशक से पहले भी संघ और हिन्दूवाली नेताओं को लुभाने की
कोशिश कर चुकी थीं। 1966 में जब वह पहली बार प्रधान मंत्री बनीं तो
उन्होंने हिंदू महासभा के समर्थकों को आकर्षित करना शुरू कर दिया था। तब
इंदिरा ने हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर की भी प्रशंसा की थी और
स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान का जश्न मनाने वाली पहल का समर्थन किया
था। इंदिरा गांधी ने ही 1970 में सावरकर के सम्मान में एक डाक टिकट जारी
करवाया था। इतना ही नहीं, उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से
सावरकर पर एक शॉर्ट फिल्म भी बनवाई थी और मुंबई में सावरकर स्मारक को
11,000 रुपये का व्यक्तिगत अनुदान भी दिया था।
संघ और इंदिरा में लंबी चली साझेदारी
इंदिरा की इन पहलों का संघ ने भी सकारात्मक समर्थन दिया था। पाकिस्तान के
साथ 1971 के युद्ध और 1974 में परमाणु परीक्षणों के दौरान संघ ने इंदिरा
गांधी के साहसिक कार्यों का खूब समर्थन किया था। 1971 के चुनावों में भी
इंदिरा 352 सीटें जीतकर जब वह सत्ता में लौटकर आईं तो उनकी आपसी साझेदारी
और भी महत्वपूर्ण हो गई। इंदिरा ने संघ नेतृत्व के साथ घनिष्ठ संबंध
स्थापित करते हुए विश्व हिंदू परिषद की पहल का भी समर्थन किया था।
बालासाहेब देवरस, जो 1975 में आपातकाल के दौरान यरवडा जेल में बंद थे, ने जेल से ही कई मौकों पर इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था और सभी पत्रों में देवरस ने इंदिरा के कदमों और भाषणों की प्रशंसा की थी।इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के पूर्व निदेशक टी वी राजेश्वर की किताब ‘इंडिया: द क्रूसियल ईयर्स’ में कहा गया है कि इंदिरा गांधी के खिलाफ जब जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आगाज किया था, तब बालासाहेब देवरस ने इंदिरा गांधी को खत लिखकर कहा था कि भले ही आंदोलन में संघ का नाम लिया जा रहा हो लेकिन उस आंदोलन से संघ का कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, संघ के कई नेताओं की अलग राय थी। किताब में यह भी दावा किया गया है कि देवरस इंदिरा गांधी और संजय से मिलने के इच्छुक थे, लेकिन यह संभव नहीं था क्योंकि इंदिरा नहीं चाहती थीं कि उन्हें संघ का हमदर्द कहा जाए।
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