आत्मा और परमात्मा का मिलन ही रास है

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बिलाईगढ़-समीपस्थ ग्राम नगरदा के बजरंग चौक में कीर्तन मंडली के सहयोग से चल रहे संगीतमय श्रीमद्भागवत  कथा के छठवें दिवस कान्हा जी महाराज कोमना उड़ीसा वाले ने  महारास की कथा सुनाते हुये कहा कि मनुष्य जीवन का प्रयोजन केवल इतने में हैं कि एन केन प्रकारेण प्रभु से प्रीति हो जाए । इस लिए मानस में बाबा तुलसी कहते है कि ' वेद पुराण सन्त मत एहू । सकल सुकृत फल राम सनेहु ।। ' और इसी प्रीति को प्राप्त करने के लिए ऋषिगण मुनिगण हजारो बर्षो तक तपस्या कर गोपी देह को प्राप्त करते हैं । ये गोपी कोई साधारण गावरी महिला नही है बल्कि गर्ग संहिता में इनके अनेक भेद पाए जाते है श्रुति रूपा , सिद्धिरूपा मिथिलापुर की नारियां, ऐसे अनेक भेद हैं गोपियों में जिन्हें भगवान ने कहा था कि मैं कृष्ण अवतार में तुम्हे अपना दिव्य प्रेम प्रदान करूँगा । भगवान ने जब रास रचना चाहा तब शरद पूर्णिमा की रात्रि में अपने अधर सुधा से वंशी में प्राण का संचार किया और जैसे ही वंशी की तान गोपियों के कान में पड़ी गोपियां सुध बुध खो बैठी । जन्मो जन्मान्तर से जिस घड़ी की प्रतिक्ष्या थी आज वह घड़ी आ गयी । बेषुध हो कर दौड़ पड़ी अपने प्राण प्रियतम के पास । और जब भगवान ने गोपियों को सांसारिक लोकलाज का भय दिखाया बहुत प्रकार से परीक्षा प्रभु ने गोपियों से लिया पर गोपियां सभी परीक्षा में उत्तीर्ण हुई तब जा कर दिव्य रास में गोपियों को प्रवेश मिला ।भगवान का प्रेम वही पा सकता है जो स्वयं को भुला कर सोहं में स्थित हो जाए । जब तक हम स्वयं में स्थित रहेंगे तब तक हमारे जीवन मे अहंकार बना रहेगा । मैं और मेरापन हमे सताता रहेगा और यही भगवान की माया है बाबा तुलसी कहते हैं मो ते मोर तोर ते माया । जब हम इस माया को लांघ जाएं तो फिर मायापति भगवान श्री कृष्ण के हो जाएंगे । इसलिए हमारे सन्त कहा करते हैं " माया को सब भजें पर माधव भजे ना कोई , जो माधव को भजे तो माया चेरी होइ ।'