हैरान कर देंगे तिरुपति बालाजी मंदिर से जुड़े यह फैक्ट्स आपको भी

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तिरुपति बालाजी मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहां पर स्थापित मूर्ति के बाल असली हैं और वे कभी उलझते नहीं हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, गढ़वन राजकुमारी ने अपने बाल काटकर स्वामी को दे दिए थे। जब पर्यटन की बात होती है तो उसमें धर्म व आस्था भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देशभर में ऐसे कई मंदिर हैं, जिन्हें देखने व भगवान के दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। सिर्फ राज्य से ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से यहां तक कि विदेशों से भी भक्तगण वहां पर आते हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक है तिरुपति बालाजी मंदिर। यह दक्षिण भारत के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। इस मंदिर की गिनती देश के सबसे अमीर मंदिरों में से एक में होती है। है। भगवान विष्णु के लिए आस्था और विश्वास रखने वाले लोग एक बार तिरुपति बालाजी मंदिर अवश्य आते हैं। हो सकता है कि आप भी इस मंदिर में दर्शन करके आ चुके हों या फिर वहां जाना चाहते हों। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको तिरुपति बालाजी मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे फैक्ट्स के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें जानने के बाद आप भी वहां जरूर जाना चाहेंगे-

असली है मूर्ति के बाल

तिरुपति बालाजी मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहां पर स्थापित मूर्ति के बाल असली हैं और वे कभी उलझते नहीं हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, गढ़वन राजकुमारी ने अपने बाल काटकर स्वामी को दे दिए थे।

कभी बुझता नहीं है दीपक

मंदिर में मूर्ति के सामने दीपक जला हुआ रखा है। हालांकि, इसे कब जलाया गया था लेकिन कोई नहीं जानता है। लेकिन इस दीपक की विशेषता यह है कि यह कभी बुझता नहीं है और हजारों सालों से ऐसे ही जल रहा है।

मूर्ति से जुड़े आश्चर्यजनक तथ्य

तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान विष्णु से जुड़ी ऐसी कई बातें हैं, जो भक्तों को आश्चर्यचकित करती हैं। मसलन, यह मान्यता है कि यहां मंदिर में स्थापित काले रंग की दिव्य मूर्ति किसी मूर्तिकार द्वारा नहीं बनाई गई, बल्कि यह खुद ही जमीन से प्रकट हुई थी। इतना ही नहीं, मंदिर में हर गुरुवार के दिन भगवान तिरुपति बालाजी की मूर्ति को चन्दन का लेप लगाया जाता है। लेकिन जब इस लेप को क्लीन किया जाता है, तो मूर्ति में खुद ब खुद लक्ष्मी जी का अक्स नजर आता है। ऐसा कैसे होता है, यह किसी को पता नहीं है। वहीं, हर सुबह मंदिर में मूर्ति का अभिषेक किया जाता है, जिसके बाद मूर्ति को पसीना आता है और पसीने को रेशमी कपड़े से पोंछा जाता है।