उन्होंने बताया कि दक्षिणायन को नकारात्मकता व उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। उत्तरायण के छह माह में देह त्याग करने वाले ब्रह्म गति को प्राप्त होते हैं जबकि और दक्षिणायन के छह माह में देह त्याग करने वाले संसार में वापिस आकर जन्म मृत्यु को प्राप्त होते हैं। यही कारण था कि भीष्म पितामह महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद मकर संक्रान्ति की प्रतीक्षा में अपने प्राण को रोके अपार वेदना सह कर शर-शैय्या पर पड़े रहे। सूर्य की राशि में परिवर्तन हुआ और भीष्म पितामह के प्राणों ने देवलोक की राह ली।
डॉ. विवेकानंद ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन पितरों के लिए तर्पण करने का विधान है। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं और भगीरथ के पूर्वज महाराज सागर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान की थी। इसीलिए इस दिन बंगाल में गंगासागर तीर्थ में कपिल मुनि के आश्रम पर विशाल मेला लगता है, जिसके बारे में मान्यता है कि ‘सारे तीरथ बार-बार, गंगा सागर एक बार। तीर्थराज प्रयाग में लगने वाले कुम्भ और माघी मेले का पहला स्नान भी इसी दिन होता है।
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